चोलटू नृत्य-हारूल और रासा नृत्य से बांधा समां ddnewsportal.com

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चोलटू नृत्य-हारूल और रासा नृत्य से बांधा समां 

गिरिपार के कईं गांव मे बुढ़ी दिवाली का समापन, मूड़ा व शाकुली की रही महक

कार्तिक तोमर-शिलाई

गिरिपार की प्रसिद्ध बुढ़ी दीवाली बीती रात्रि कई गांव में समाप्त हो गई है। शिलाई उपमंडल की मशहूर बुढ़ी दिवाली के दौरान क्षेत्र के द्राबिल गांव में

प्रातः से ही बुढ़ी दीवाली के समापन में पूरे गांव के लोग व दिवाली के लिए अन्य गांव से आए मेहमानों ने नाच गाना शुरू कर दिया। चोलटू नृत्य, हारूले के साथ रासा नृत्य भी दिन भर चलता रहा। गावं के लोगों ने दिवाली में आए मेहमानों का स्वागत मूड़ा शाकुली, अखरोट, चिवड़ा से किया। द्राबिल साझा आंगन में रात्रि को नाटक मंचन भी किया गया व लोगो के मनोरंजन के लिए  खेलटू खेल में उपस्थित लोगों को खूब हंसाया। शिलाई क्षेत्र के द्राबिल, धारवा, नाया व अन्य गावों में पांच दिवसीय बुढ़ी दिवाली उत्सव का समापन में वाद्य यंत्र शहनाई, कनाल, ढोल-नगाड़ा, दुमानटू, ताली, हुड़क की थाप पर गायक कलाकारों द्वारा रासा, माला नृत्य और बीर गाथाएं दिनभर व देर शाम तक चलती रही। द्राबिल गावँ में पौराणिक ढोल -नृत्य भी बजन्त्रियो द्वारा दिखाया गया। खेलटू हास्य व्यंग्य से लोग लोट-पोट हो गए वहीं नाया गावँ में हुड़क नृत्य देखने को मिला जो प्रायः लुप्त हो रहा है। स्मरण रहे कि गिरिपार

क्षेत्र में बूढ़ी दिवाली और 28 गते पोश में मनाए जाने वाले माघी त्योहार सबसे बड़े त्योहार माने जाते है। घर से बाहर नोकरी पेशे से जुड़े लोग भी घर आकर इन त्योहारो में अवश्य शामिल रहते है। नई दिवाली से ही ग्रामीण क्षेत्रो में बूढ़ी दिवाली की तैयारियाँ शुरू हो जाती है और बूढ़ी दिवाली के बाद भतियोज की तैयारी में लोग जुट जाते है।